Monday, November 8, 2010

लघु प्रेम कथा : इंतज़ार


मन ही मन मैं खुद को कोस रहा था की क्यों मैंने इस बेकार सी कांफ्रेंस में भाग लेने का निर्णय लिया | कांफ्रेंस की अंतिम पंक्ति में बता में उन तमाम प्रवक्ताओ को सुन रहा था जो बड़े ही अजीब विषयों पर भाषण दिए जा हे थे और सब कुछ मेरे दिमाग के ऊपर से जा रहा था |

बीच बीच में मैं इधर-उधर देख कर अपनी बोरियत को दूर करने का असफल प्रयास कर रहा था |
अचानक मेरी नजर मेरे से आगे वाली पंक्ति में बेठी एक लड़की पर पड़ी| उसका चेहरा मुझ ठीक से दिखाई नही दे रहा था |

" अरे यार ! ये तो वही है ???" मैंने अपने आप से पूछा |
"नहीं यार उसके तो सुन्हेरी बाल थे !!!!"
"!!! यार बाल तो इसके भी सुन्हेरी है पर थोड़े छोटे है !!!"
"यार वो तो इस से थोड़ी मोटी भी थी ???"
" हो सकता है वजन कम कर लिया हो !"
थोडा आगे होकर मैंने उसकी आवाज़ सुनने की कोशिस की |
"यार आवाज़ तो थोड़ी भारी लग रही है ??"
"शायद......!!!! गला ख़राब होगा हाँ "
"लग तो वो ही रही है ???"
मैं इसी कशमकश में था की उसने पीछे मुड कर देखा | दो सेकेण्ड के लिए में बिलकुल अवाक रह गया | वो वही थी | उसने मुझे पहचान लिया और बड़ी प्यारी सी मुस्कान के साथ मुझे "हेल्लो" कहा |मेरे दिल में एक अजीब सी हलचल पैदा हुई | मैंने भी मुस्कराकर उसका जवाब दिया |


अपनी ग्रेजुएशन के तीन वर्ष में उसे अपने दिल की बात नहीं कह पाया था | वह कक्षा की सबसे होशिआर और सबसे खुबसूरत लड़की थी और मैं ..... एक मध्यम दर्जे का छात्र | इस लिए शायद कभी हिम्मत हीनहीं जुटा पाया |

अगले आधे घंटे तक मैं यही सोचता रहा की अभी उस से क्या बात करूँगा |
जैसे ही कांफ्रेंस ख़तम हुई उसने इशारे से मुझे बाहर मिलने को कहा |
" सो क्या हाल है ? " उसने मुझसे पुछा .
"बस बढ़िया "
" सो क्या कर रहे हो आज कल ?" उसने कहा
"मैं पोस्ट-ग्रेजुएशन ......युनिवेर्सिटी में ।"
अक्सर अकेले में सोचता था कि बस एक बार मिल जाए वो ..उसे मैं ये कहूँगा , वो कहूँगा , उसे दिल कि बात कह ही दूंगा | परन्तु आज .... जब वो मेरे सामने थी, मेरे मुख से एक भी शब्द नही निकल रहा था |
" तो अकेले आये हो ? " उसने पूछा
"हाँ.... तेरे जैसी कोई मिली ही नहीं !"
हालाँकि यह बात में उसे नही कहना चाहता था परन्तु पता नही क्यों दिल के जज़्बात बाहर आ गये, लेकिन वो ..... उसने सिर्फ मुस्कराकर बात को ताल दिया | शायद वो इसके पीछे की भावनाओ को नही समझ पाई|

अभी हमने दो मिनट ही बात की थी की उसकी सहेली की चलने के लिए आवाज़ आई | "अभी आ रही हूँ " उसने अपनी सहेली को कहा |
वो जा रही थी , मैं उसे रोकना चाहता था, थोड़ी देर और बाते करना चाहता था, थोड़ी देर और उसे निहारना चाहता था, उसका फ़ोन नंबर या पता मांगना चाहता था ताकि भविष्य में संपर्क कर सकू , परन्तु एक बार फिर मेरी हिम्मत मुझे जवाब दे गयी और वो चली गयी | मैं उसे तब तक जाते हुए निहारता रहा जब तक वो आँखों से ओझल न हो गयी |

इसी उम्मीद में की जिंदगी में उससे ऐसी ही मुलाकात एक और हो जाए और मैं अपने दिल की बात उसे कह सकू , मैं एक बार फिर अनिश्चित समय के लिए उसका इंतज़ार करने लगा |

----कपिल गर्ग --