Friday, February 15, 2013

एहसास

शाम को ऑफीस के दोस्तों का अचानक पार्टी का प्लान बन गया| दोस्तों ने मुझसे पूछा "चलोगे??"| मैने कहा क्यू नही, आख़िर मेरा कौनसा कोई घर पर इंतज़ार कर रहा है|

ठीक दो दिन बाद

मैं सुबह से ही दर्द से कराह रहा था| टाँगों में तेज़ दर्द था, गले में इंफेक्शन और शरीर भूखार से तर बतर था| पारा 102 से उपर था|  हालाँकि मेड खाना देकर जा चुकी थी| मैं डॉक्टर से दवाई भी ले आया था| पर खाना और दवाई के इलावा भी मुझे कुछ चाहिए था जिसके बगैर मैं इतनी जल्दी ठीक नही हो सकता था| मोह, स्नेह| मुझे चाहिए था वो जो हर आधे घंटे में मुझसे मेरा हाल पूछे, जब मैं सोऊ तो स्नेह से मेरे सिर पर हाथ फेरे, जब मेरे खाने का मन ना हो तो ज़बरदस्ती अपने हाथ से मुझे खिलाए| लेकिन उस समय ऐसे कोई भी मेरे पास नही था| एक बार तो मन में आया के सब कुछ छोड़-छाड़ के चला जाऊं वापिस अपने गाँव|

पापा जब भी बीमार होते तो वो दर्द में कराहने के बजाय हर साँस में 'हे राम' कहते| और इससे उन्हे आराम भी मिलता| अब मेरे लिए तो मेरे माता-पिता ही भगवान हैं, तो मैं जब भी बीमार होता तो हर साँस में 'मम्मी' कहता| तो सुबह से ही मैं मम्मी-मम्मी बोल के कराह रहा था और शाम को मम्मी का फोन भी आ गया| हालाँकि अपनी बीमारी के बारे में मैं अपनी मम्मी को कुछ नहीं बताता| मुझे याद है जब छोटा था तो मुझे हल्की सर्दी जुकाम होने पर भी मम्मी को पूरी रात नींद नही आती थी| लेकिन जब फोन पर मम्मी ने कहा "आज सुबह से ही मुझे बिना सर्दी जुकाम के छींके आ रही है, लगता है कोई याद कर रहा है" तो मुझे उन्हे अपनी बीमारी के बारे में बताना ही पड़ा|
वो तो गनीमत रही कि अगले दिन ही मुझे आराम आ गया नही तो वो तो अपना समान बाँध चुकी थी यहाँ आने के लिए|
लेकिन इस बीमारी के बाद एहसास तो हो ही गया कि घर पर इंतज़ार करने वाला कोई तो होना ही चाहिए|